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नज़्म
जल्सा-गाहों में ये दहशत-ज़दा सहमे अम्बोह
रहगुज़ारों पे फ़लाकत-ज़दा लोगों के गिरोह
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मुज़्महिल साअत-ए-इमरोज़ की बे-रंगी से
याद-ए-माज़ी से ग़मीं दहशत-ए-फ़र्दा से निढाल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
एक अनार का पेड़ बाग़ में और घटा मतवारी थी
आस-पास काले पर्बत की चुप की दहशत तारी थी
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
दहशत-ए-फ़र्दा से थर्राएगा जब उन का ग़ुरूर
हाल से तू होगी राज़ी ख़ौफ़-ए-मुस्तक़बिल से दूर
जोश मलीहाबादी
नज़्म
हम ने रक्खी है यहाँ अम्न-ओ-अमाँ की बुनियाद
अपनी फ़ितरत में नहीं दहशत ओ दंगा ओ फ़साद
खालिद इरफ़ान
नज़्म
ऐसे हर मंज़र के बाद इक सन्नाटा छा जाता है
ये सन्नाटा तब्ल-ओ-अलम की दहशत को खा जाता है