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नज़्म
'ग़सब'-ए-उजरत को दिया 'सरमाया' का जिस ने लक़ब
बे-हिसाब उस की बसीरत उस की मंतिक़ ला-जवाब
वामिक़ जौनपुरी
नज़्म
सरसर-ए-बे-ए'तिदाली से गुरेज़ाँ फ़िक्र-ओ-फ़न
होश में था ता-दम-ए-आख़िर ज़मीर-ए-मो'तबर
अज़ीज़ तमन्नाई
नज़्म
दिया है रब ने तो बे-शक तुम उस को ख़र्च करो
मगर ब-क़द्र-ए-ज़रूरत हो बे-हिसाब न हो
अब्दुल अहद साज़
नज़्म
इस सोज़-ए-जाँ-गुसिल से हर इक दिल कबाब है
फ़र्त-ए-तपिश है आतिश-ए-ग़म बे-हिसाब है