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नज़्म
दरबार-ए-वतन में जब इक दिन सब जाने वाले जाएँगे
कुछ अपनी सज़ा को पहुँचेंगे, कुछ अपनी जज़ा ले जाएँगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तिरे अशआ'र ने रंग-ए-क़ुबूल-ए-आम पाया है
जहाँ में तू ने अपनी शेरियत से नाम पाया है
बिर्ज लाल रअना
नज़्म
नुशूर वाहिदी
नज़्म
यकसाँ नज़दीक-ओ-दूर पे था बारान-ए-फ़ैज़-ए-आम तिरा
हर दश्त-ओ-चमन हर कोह-ओ-दमन में गूँजा है पैग़ाम तिरा
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
ख़ालिद अहमद
नज़्म
इख़तिलाफ़-ए-दीन-ओ-मिल्लत के ये झगड़े हों तमाम
जो मुसीबत बन गए हैं आज बहर-ए-ख़ास-ओ-आम
सफ़ीर काकोरवी
नज़्म
तभी तो हम ने तोड़ दिया था रिश्ता-ए-शोहरत-ए-आम
तभी तो हम ने छोड़ दिया था शहर-ए-नुमूद-ओ-नाम