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नज़्म
नदीम जैसे निगल ली हो मैं ने नाग-फनी
ज़ इश्क़-ज़ादम ओ इशक़म कमुश्त ज़ार-ओ-दरेग़
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
बहर-ए-हस्ती ले रहा था बे-दरेग़ अंगड़ाइयाँ
थेम्स की अमवाज जमुना से हुई थीं हम-कनार
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
फ़िराक़-ए-गुल में मैं मिन्न्त-कश-ए-फ़ुग़ाँ हूँ दरेग़
ये दाग़-ए-सोज़-ए-जुदाई न दे ख़ुदा मुझ को
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
मुझे इस शाम है अपने लबों पर इक सुख़न लाना
'अली' दरवेश था तुम उस को अपना जद्द न बतलाना
जौन एलिया
नज़्म
मैं उस लड़के से कहता हूँ वो शोला मर चुका जिस ने
कभी चाहा था इक ख़ाशाक-ए-आलम फूँक डालेगा
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
दबेगी कब तलक आवाज़-ए-आदम हम भी देखेंगे
रुकेंगे कब तलक जज़्बात-ए-बरहम हम भी देखेंगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
वो राज़-दार-ए-महफ़िल-ए-याराँ नहीं रहा
वो ग़म-गुसार-ए-बज़्म-ए-अरीफ़ाँ चला गया