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नज़्म
अता मोमिन को फिर दरगाह-ए-हक़ से होने वाला है
शिकोह-ए-तुर्कमानी ज़ेहन हिन्दी नुत्क़ आराबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तिरे दिल की तमन्ना भी करूँ तो किस भरोसे पर
मैं ख़ुद दरगाह में तेरे ये तोहफ़ा ला नहीं सकता
गोपाल मित्तल
नज़्म
ये ख़ुदा या किसी दरगाह पे रक्खे हुए आँसू की तपिश
मेरा ईमाँ कि सनम-ख़ाना-ए-तन्हाई में
मक़सूद वफ़ा
नज़्म
तिरे दिल की तमन्ना भी करूँ तो किस भरोसे पर
मैं ख़ुद दरगाह में तेरी ये तोहफ़ा ला नहीं सकता
गोपाल मित्तल
नज़्म
अभी मरदूद-ए-दरगाह-ए-ख़िरद है ताबिश-ए-ईमाँ
अभी मक़्बूल-ए-आलम ज़ुल्मत-ए-औहाम है साक़ी