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नज़्म
तर्ज़-ए-नौ की शाएरी की कोई कल सीधी नहीं
शहर भर में ऊँट बे-चारा अबस बद-नाम है
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
विदा-ए-रोज़-ए-रौशन है गजर शाम-ए-ग़रीबाँ का
चरा-गाहों से पलटे क़ाफ़िले वो बे-ज़बानों के
नज़्म तबातबाई
नज़्म
फैज़ तबस्सुम तोंसवी
नज़्म
जमीलुद्दीन आली
नज़्म
जिस किसी ने इन दिनों कोई दवा ईजाद की
बस ये समझो उस ने इक बस्ती नई आबाद की