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नज़्म
नहीं मिन्नत-कश-ए-ताब-ए-शुनीदन दास्ताँ मेरी
ख़मोशी गुफ़्तुगू है बे-ज़बानी है ज़बाँ मेरी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हम हैं हालाँकि बहुत ये हो चुका है इंक़लाब
सुन रहे हैं दास्तान-ए-ग़म मगर क्या दें जवाब
शहज़ादी कुलसूम
नज़्म
ऐ शहीद-ए-जलवा-ए-मानी फ़क़ीर-ए-बे-नियाज़
इस तरह किस ने कही है दास्तान-ए-सोज़-अो-साज़
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
राज़दान-ए-ज़िंदगी ऐ तर्जुमान-ए-ज़िंदगी
है तिरा हर लफ़्ज़ ज़िंदा दास्तान-ए-ज़िंदगी
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
नज़्म
और सुनी बंसी की है बरसों सदा-ए-दिल-नवाज़
दास्तान-ए-दर्द-ए-दिल अफ़साना-ए-सोज़-ओ-गुदाज़
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
फूलों का मज़ाक़ उड़ा कर किस देस को जा बसीं
दास्तान-ए-हिज्र सुना कर ज़रा ग़ौर से देखना
रियाज़ तौहीदी
नज़्म
जो चाहूँ भी तो किस को दास्तान-ए-ग़म सुनाऊँगा
वो रंज-ए-तह-नशीं है जो बयाँ हो ही नहीं सकता