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नज़्म
ये 'नानक' की ये 'ख़ुसरव' की 'दया-शंकर' की बोली है
ये दीवाली ये बैसाखी ये ईद-उल-फ़ित्र होली है
मंज़र भोपाली
नज़्म
हर मंज़र हर इंसाँ की दया और मीठा जादू औरत का
इक पल को हमारे बस में है पल बीता सब मिट जाएगा
मीराजी
नज़्म
मिटा सकता है कौन ऐसी ज़बान-ए-पाक-फ़ितरत को
दया दर्स-ए-वफ़ा जिस ने मज़ाक़-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत को
अलम मुज़फ़्फ़र नगरी
नज़्म
बिल्कुल तेरी तरह ओर है न छोर इस का
दावा तो करता है कि नज़दीक-तर है तू मेरी शह-रग से भी
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
फिर आहिस्ता आहिस्ता तारीक होने लगी थी कि अंधा मुसाफ़िर
उछल कर किसी सम्त-ए-बे-नाम को चल दया था