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नज़्म
ख़ुदा-ए-सुख़न 'मीर' के सोज़-ए-पिन्हाँ की मैं राज़दाँ हूँ
वो दीवान-ए-ग़ालिब वो शहकार-ए-तख़लीक़-ए-आदम
ख़ालिद मुबश्शिर
नज़्म
नहीं मालूम 'ज़रयून' अब तुम्हारी उम्र क्या होगी
वो किन ख़्वाबों से जाने आश्ना ना-आश्ना होगी
जौन एलिया
नज़्म
हैं ब-ज़ोम-ए-ख़ुद मुहक़क़िक़ आप हिन्दोस्तान के
आप ने नुक़्ते गिने हैं 'मीर' के दीवान के
रज़ा नक़वी वाही
नज़्म
ये देश कि हिन्दू और मुस्लिम तहज़ीबों का शीराज़ा है
सदियों की पुरानी बात है ये पर आज भी कितनी ताज़ा है
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
ये तजरीदी ख़ाकों की तस्वीर-गह है
मिरा मुँह चिड़ाने को दीवार-ओ-दर पर कई मस्ख़ पैकर टँगे हैं
अफ़ज़ल परवेज़
नज़्म
ज़ुल्म फिर ज़ुल्म है बढ़ता है तो मिट जाता है
ख़ून फिर ख़ून है टपकेगा तो जम जाएगा