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नज़्म
सुख़न ही क्या फ़सानों का धरा क्या है फ़सानों में
मिरा क्या तज़्किरा और वाक़ई क्या तज़्किरा मेरा
जौन एलिया
नज़्म
ज़रा देख उस को जो कुछ हो रहा है होने वाला है
धरा क्या है भला अहद-ए-कुहन की दास्तानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जो भी धारा था उन्हीं के लिए वो बेकल था
प्यार अपना भी तो गँगा की तरह निर्मल था
राजेन्द्र नाथ रहबर
नज़्म
मदद करनी हो उस की यार की ढारस बंधाना हो
बहुत देरीना रस्तों पर किसी से मिलने जाना हो
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
जलाना छोड़ दें दोज़ख़ के अंगारे ये मुमकिन है
रवानी तर्क कर दें बर्क़ के धारे ये मुमकिन है
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
हर मौज-ए-रवाँ पर लहराती हँसती सी रुपहली इक धारी
जैसे किसी चंचल के तन पर लहराए बनारस की सारी
नज़ीर बनारसी
नज़्म
मरकज़ रंगीं रानाई का चिकना तम्बू हलवाई का
ज़ीना ज़ीना ज़ीनत से धरा है थाल पे थाल मिठाई का