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नज़्म
ख़ुशनुमा शहरों का बानी राज़-ए-फ़ितरत का सुराग़
ख़ानदान-ए-तेग़-ए-जौहर-दार का चश्म-ओ-चराग़
जोश मलीहाबादी
नज़्म
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
मेले की सज-धज में खो कर बाप की उँगली छोड़ गया
होश आया तो ख़ुद को तन्हा पा के बहुत हैरान हुआ
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
मिलने से घबराता हूँ मैं झूट नहीं कह पाता हूँ
उस के शिकवे उस की शिकायत झगड़े से डर जाता हूँ
अबु बक्र अब्बाद
नज़्म
कौन पोंछेगा मिरे बहते हुए अश्कों की धार
कौन पानी पढ़ के देगा होगा जब मुझ को बुख़ार
शहनाज़ परवीन शाज़ी
नज़्म
अभी दिमाग़ पे क़हबा-ए-सीम-ओ-ज़र है सवार
अभी रुकी ही नहीं तेशा-ज़न के ख़ून की धार
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
इक ऐसी धार की तलवार है जिस पर गुज़रना है
मुझे और ज़िंदगी के ज़ख़्म को टाँके लगाना हैं
वसीम बरेलवी
नज़्म
ये जो रिश्ता-दार था हम सब का लेकिन दूर का
मिल के मालिक ने इसे रुत्बा दिया मंसूर का