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नज़्म
ये खेप जो तू ने लादी है सब हिस्सों में बट जावेगी
धी पूत जँवाई बेटा क्या बंजारन पास न आवेगी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
चल काम में अपने दिल को लगा यूँ कोई मुझे समझाता है
मैं धीरे धीरे दफ़्तर में अपने दिल को ले जाता हूँ
मीराजी
नज़्म
तुम्हारी हर ग़ज़ल में मीर का अंदाज़ मिलता है
हर इक मिसरे से जैसे धीमी धीमी आँच उठती है
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
वो धीमे लहजे वाला था और धीरे से हँसता था
जितने भी लोग मिले हम को सच जानो सब से अच्छा था
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
अब हम ने कभी खाना खा कर कपड़ों से हाथ नहीं पोंछे
देखो कई दिन से धोबी ने रोना चिल्लाना छोड़ दिया