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नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
हर शाम यहाँ शाम-ए-वीराँ आसेब-ज़दा रस्ते गलियाँ
जिस शहर की धुन में निकले थे वो शहर दिल-ए-बर्बाद कहाँ
हबीब जालिब
नज़्म
उस नार में ऐसा रूप न था जिस रूप से दिन की धूप दबे
इस शहर में क्या क्या गोरी है महताब-रुख़े गुलनार-लबे
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
सुनते ही ग़म को मारे छाती है उमंडी आती
पी पी की धुन को सुन कर बे-कल हैं कहती जाती
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
आया हमारे देस में इक ख़ुश-नवा फ़क़ीर
आया और अपनी धुन में ग़ज़ल-ख़्वाँ गुज़र गया