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नज़्म
गर मुझे इस का यक़ीं हो मिरे हमदम मिरे दोस्त
गर मुझे इस का यक़ीं हो कि तिरे दिल की थकन
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
कभी राहत कभी आज़ार-ए-जाँ मालूम होती है
मोहब्बत एक पैहम इम्तिहाँ मालूम होती है
राम लाल वर्मा हिंदी
नज़्म
क्या ख़बर थी ये तिरे फूल से भी नाज़ुक होंट
ज़हर में डूबेंगे कुम्हलाएँगे मुरझाएँगे