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नज़्म
जुस्तुजू किस की है 'नाशाद' कोई क्या जाने
क्यों दिल-ए-ज़ार है बर्बाद कोई क्या जाने
राबिया सुलताना नाशाद
नज़्म
दिल-ओ-जिगर में है इक दर्द कहकशाँ की तरह
ग़लत जगह कभी अफ़्शाँ नहीं चुने जाते
राबिया सुलताना नाशाद
नज़्म
ऐ काश कोई उस से जा कर ये हाल दिल-ए-बर्बाद कहे
बीमार-ए-ग़म-ए-उल्फ़त तेरा है नज़्अ' में दम घबराता है
राबिया सुलताना नाशाद
नज़्म
मैं तलाश कर रही थी ग़म-ए-दिल का कुछ बहाना
मिरी राह में ये नाहक़ कहाँ आ गया ज़माना
राबिया सुलताना नाशाद
नज़्म
सोज़िश-ए-ग़म का बयाँ लब पे न लाऊँ क्यूँकर
दर्द है हद से सिवा दिल में छुपाऊँ क्यूँकर
राबिया सुलताना नाशाद
नज़्म
जुदाई चाहे किसी तरह की भी हो ऐ दोस्त
दिल-ओ-जिगर में ये काँटे चुभो ही देती है
ज़हीर नाशाद दरभंगवी
नज़्म
रहा करता है अहल-ए-ग़म को क्या क्या इंतिज़ार इस का
कि देखें वो दिल-ए-नाशाद को कब शाद करते हैं