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नज़्म
तिरा दिल ज़रा भी ज़ालिम जो वफ़ा-शिआ'र होता
तुझे मेरी क़द्र होती तुझे मुझ से प्यार होता
जलील क़िदवई
नज़्म
ज़िंदगी राहत-ए-जाँ दर्द दिल-ए-ज़ार भी है
बाँझ खेती भी है और किश्त-ए-गुहर-बार भी है
ओम प्रकाश बजाज
नज़्म
जुस्तुजू किस की है 'नाशाद' कोई क्या जाने
क्यों दिल-ए-ज़ार है बर्बाद कोई क्या जाने
राबिया सुलताना नाशाद
नज़्म
क्या क्या न दिल-ए-ज़ार ने ढूँडी हैं पनाहें
आँखों से लगाया है कभी दस्त-ए-सबा को
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जज़्ब-ए-एहसास के शोलों की तपिश से इक दिन
ज़र की लंका में लगा देना है इक बार फिर आग