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नज़्म
सलाम संदेलवी
नज़्म
शक्ल नज़र में फिर गई दुख़्तर-ए-शीर-ख़ार की
हाए वो रुख़ गुलाब सा उफ़ वो हँसी बहार की
सलाम संदेलवी
नज़्म
पहलू-ए-शाह में ये दुख़्तर-ए-जम्हूर की क़ब्र
कितने गुम-गश्ता फ़सानों का पता देती है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
सालहा बे-दस्त-ओ-पा हो कर बुने हैं तार-हा-ए-सीम-ओ-ज़र
उन के मर्दों के लिए भी आज इक संगीन जाल
नून मीम राशिद
नज़्म
जो कुश्तगान-ए-तिलिस्म-ए-ज़र की हयात-ए-ताज़ा का मो'जिज़ा है
जो अहद-ए-हाज़िर के साहिरों
हिमायत अली शाएर
नज़्म
क़ल्ब मेरा दौलत-ए-एहसास खो सकता नहीं
आब-ओ-ताब-ए-ज़र में ख़ुद्दारी डुबो सकता नहीं
नख़्शब जार्चवि
नज़्म
कहीं ये ख़ूँ से फ़र्द-ए-माल-ओ-ज़र तहरीर करती है
कहीं ये हड्डियाँ चुन कर महल ता'मीर करती है