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नज़्म
जारहिय्यत चीन की अब हो गई सब पर अयाँ
सारी दुनिया कह उठी है दुश्मन-ए-अम्न-ओ-अमाँ
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
मुझ से आँखें तो मिला ऐ दुश्मन-ए-सोज़-ओ-गुदाज़
तुझ पे क्या अज़दाद की तौहीद का इफ़शा है राज़
जोश मलीहाबादी
नज़्म
दुश्मन-ए-जान-ए-हज़ीं ईसा-ए-दौराँ तू है
सम्म-ए-क़ातिल है कभी चश्मा-ए-हैवाँ तू है
मास्टर बासित बिस्वानी
नज़्म
अभी तहज़ीब-ए-अदल-ओ-हक़ की कश्ती खे नहीं सकती
अभी ये ज़िंदगी दाद-ए-सदाक़त दे नहीं सकती
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मैं शायर हूँ मुझे फ़ितरत के नज़्ज़ारों से उल्फ़त है
मिरा दिल दुश्मन-ए-नग़्मा-सराई हो नहीं सकता
साहिर लुधियानवी
नज़्म
अपने मुस्तक़बिल से ताग़ूती तमद्दुन को है यास
दीदनी है दुश्मन-ए-इंसानियत का इज़्तिराब