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नज़्म
वो माँ कि झिड़कियां भी जिस की फूल बरसाएँ
वो माँ हम उस से जो दम भर को दुश्मनी कर लें
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
जिसे दुश्मनी पे ग़ुरूर था उसे दोस्ती से शिकस्त दी
जो धड़क रहे थे अलग अलग उन्हें दो दिलों को मिला दिया
नुशूर वाहिदी
नज़्म
है गुल-ए-मक़्सूद से पुर गुलशन-ए-कश्मीर आज
दुश्मनी ना-इत्तिफ़ाक़ी सब्ज़ा-ए-बेगाना है
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
कमतरी का है 'शिफ़ा' एहसास इन सब का सबब
दुश्मनी औरों के दिल में तो नहीं पाता हूँ मैं
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
तुम्हें इन आइनों से दुश्मनी क्यूँ है
हमेशा आइनों का मुँह चिढ़ाते हो, सदा तज़हीक करते हो
ख़ालिद मुबश्शिर
नज़्म
कि मोहब्बत का मरीज़-ए-मुस्तक़िल हूँ 'मज़हरी'
दोस्ती क्या दुश्मनी से भी मोहब्बत मैं ने की
जमील मज़हरी
नज़्म
कहने लगा मैं तुम्हारा बे-दाम ग़ुलाम हूँ
इन दिनों तुम दुश्मनी के काँटे बोने में मसरूफ़ हो
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
और अगर बनाया ही था तो उन के अंदर ज़हर क्यूँ भर दिया
क्यूँ हो गए ये इंसान के दुश्मन