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नज़्म
ग़म का मारा हर कोई ख़ुशियों का ठुकराया लगे
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
नज़ीर फ़तेहपूरी
नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
निगार-ए-शाम-ए-ग़म मैं तुझ से रुख़्सत होने आया हूँ
गले मिल ले कि यूँ मिलने की नौबत फिर न आएगी
मुस्तफ़ा ज़ैदी
नज़्म
निगार-ए-शाम-ए-ग़म मैं तुझ से रुख़्सत होने आया हूँ
गले मिल ले कि यूँ मिलने की नौबत फिर न आएगी
मुस्तफ़ा ज़ैदी
नज़्म
ख़ार-ज़ार-ए-ग़म-ए-हस्ती में रहेंगे कब तक
मुतरिब-ए-वक़्त कहीं छेड़ न दे तल्ख़ ग़ज़ल