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नज़्म
और इक जाम-ए-मय-ए-तल्ख़ चढ़ा लूँ तो चलूँ
अभी चलता हूँ ज़रा ख़ुद को सँभालूँ तो चलूँ
मुईन अहसन जज़्बी
नज़्म
उसी की सर-बुलंदी से वतन की सर-बुलंदी है
मैं एहसास-ए-वक़ार-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत पेश करता हूँ
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
हिकायात-ए-शीरीन-ओ-तल्ख़ उन की, उन के दरख़्शाँ जराएम
जो सफ़्हात-ए-तारीख़ पर कारनामे हैं, उन के अवामिर
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
मुझ को एहसास-ए-फ़रेब-ए-रंग-ओ-बू होता रहा
मैं मगर फिर भी फ़रेब-ए-रंग-ओ-बू खाता रहा
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
रहते हैं यहाँ शाही दफ़ातिर के मुलाज़िम
जिन को न कुछ एहसास-ए-ग़रीबुल-वतनी है