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नज़्म
बहू कहे अपना घर कैसा याँ तो अपने भी हैं पराए
सास कहे जल-भुन के उसे तो राज-महल भी रास न आए
मीराजी
नज़्म
अगर किसी पयम्बर-ए-अज़ीम की नज़र उठी
निगाह बाज़गश्त-ए-ना-मुराद की शिकस्तगी के वार से
सय्यद मुबारक शाह
नज़्म
और तुझ को किसी तालाब के सीने में उतार आएँ हम
भूत आ कर तिरी रंगत में बसेरा कर लें
राजेन्द्र मनचंदा बानी
नज़्म
अर्श सिद्दीक़ी
नज़्म
ख़्वाब-ए-गिराँ से ग़ुंचों की आँखें न खुल सकीं
गो शाख़-ए-गुल से नग़्मा बराबर उठा किया
आल-ए-अहमद सुरूर
नज़्म
समझ में न आए अगर अब मैं सोचूँ मुझे क्या हुआ था
मिरी बेबसी थी किसी लम्हा-ए-बे-बसीरत की साज़िश