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नज़्म
यक़ीं मोहकम अमल पैहम मोहब्बत फ़ातेह-ए-आलम
जिहाद-ए-ज़िंदगानी में हैं ये मर्दों की शमशीरें
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जब्र से नस्ल बढ़े ज़ुल्म से तन मेल करें
ये अमल हम में है बे-इल्म परिंदों में नहीं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ये घड़ी महशर की है तू अर्सा-ए-महशर में है
पेश कर ग़ाफ़िल ‘अमल कोई अगर दफ़्तर में है