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नज़्म
यूँ न था मैं ने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाए
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
क़त्अ होती ही नहीं तारीकी-ए-हिरमाँ से राह
फ़ाक़ा-कश बच्चों के धुँदले आँसुओं पर है निगाह
जोश मलीहाबादी
नज़्म
अभी तो फ़ाक़ा-कश इंसान से आँखें मिलाना है
अभी झुलसे हुए चेहरों पे अश्क-ए-ख़ूँ बहाना है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
आज से ऐ मज़दूर किसानो मेरे गीत तुम्हारे हैं
फ़ाक़ा-कश इंसानो मेरे जोग-बहाग तुम्हारे हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
फ़ाक़ा-मस्तों के जिलौ में ख़ाना-बर्बादों के साथ
ख़त्म हो जाएगा ये सरमाया-दारी का निज़ाम
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
आशिक़-ए-बिन्त-ए-एनब को आप कहते हैं वली
फ़ाक़ा-मस्ती में भी हर दम कर रहा है मय-कशी
नश्तर अमरोहवी
नज़्म
फ़ाक़ा-मस्ती में बिखरते हुए सारे रिश्ते
तंग-दस्ती के सबब सारी फ़ज़ाएँ बेहाल
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
मिरे फ़ाक़ा-ज़दा बचपन को नींदों से गुरेज़ाँ, पा
के जो परियों के अफ़्साने सुनाते थे तो मैं ख़्वाबों
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
नज़्म
क्या ख़बर थी क़ीमतें यूँ होंगी सस्ती एक दिन
''रंग लाएगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन''