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नज़्म
सब्ज़ा ओ बर्ग ओ लाला ओ सर्व-ओ-समन को क्या हुआ
सारा चमन उदास है हाए चमन को क्या हुआ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तोले हुए है तेग़-ओ-सिनाँ हुस्न-ए-बे-नक़ाब
नावक-फ़गन है जल्वा-ए-पिन्हान-ए-लखनऊ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
कत्तर एक मिली चूहे को सोचा उस ने क्या बनवाए
दिल में सोचा गोटे वाली टोपी लीजिए इक बनवाए
फ़रहत क़मर
नज़्म
जब आई होली रंग-भरी सौ नाज़-ओ-अदा से मटक मटक
और घूँघट के पट खोल दिए वो रूप दिखला चमक चमक
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
रहबर जौनपूरी
नज़्म
ज़ुल्फ़ की छाँव में आरिज़ की तब-ओ-ताब लिए
लब पे अफ़्सूँ लिए आँखों में मय-ए-नाब लिए
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
करोगे कब तलक नावक फ़राहम हम भी देखेंगे
कहाँ तक है तुम्हारे ज़ुल्म में दम हम भी देखेंगे