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नज़्म
'कुछ और कहो तो सुनता हूँ इस बाब में कुछ मत फ़रमाना'
इस बस्ती के इक कूचे में इक 'इंशा' नाम का दीवाना
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
किस की नौ-मीदी पे हुज्जत है ये फ़रमान-ए-जदीद
है जिहाद इस दौर में मर्द-ए-मुसलमाँ पर हराम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ज़िंदगी तेरी है बे-रोज़-ओ-शब-ओ-फ़र्दा-ओ-दोश
ज़िंदगी का राज़ क्या है सल्तनत क्या चीज़ है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
उम्र-ए-रफ़्ता के किसी ताक़ पे बिसरा हुआ दर्द
फिर से चाहे कि फ़रोज़ाँ हो तो हो जाने दो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
सुब्ह का फ़रज़ंद ख़ुर्शीद-ए-ज़र-अफ़शाँ का अलम
मेहनत-ए-पैहम का पैमाँ सख़्त-कोशी की क़सम
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ये हंगाम-ए-विदा-ए-शब है ऐ ज़ुल्मत के फ़रज़ंदो
सहर के दोश पर गुलनार परचम हम भी देखेंगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ये दुनिया दावत-ए-दीदार है फ़रज़ंद-ए-आदम को
कि हर मस्तूर को बख़्शा गया है ज़ौक़-ए-उर्यानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जिस पर नाज़ है हम को इतना झुकी है अक्सर वही जबीं
कभी कोई सिफ़्ला है आक़ा कभी कोई अब्ला फ़र्ज़ीं
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
तेरी आँखों में फ़रोज़ाँ हैं जवानी के शरार
लब-ए-गुल-रंग पे रक़्साँ हैं जवानी के शरार