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नज़्म
ये इंसानों से इंसानों की फ़ितरत छीन लेती है
ये आशोब-ए-हलाकत फ़ित्ना-ए-इस्कंदर-ओ-दारा
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
फ़ित्ना-ए-ख़ुफ़ता जगाए उस घड़ी किस की मजाल
क़ैद हैं शहज़ादियाँ कोई नहीं पुर्सान-ए-हाल
हफ़ीज़ जालंधरी
नज़्म
कुछ ऐसे रूप में आया है फ़ित्ना-ए-हाज़िर
तमीज़-ए-दोस्ताँ ओ दुश्मनाँ भी मुश्किल है
मौलवी सय्यद मुमताज़ अली
नज़्म
तिरे अशआ'र ने रंग-ए-क़ुबूल-ए-आम पाया है
जहाँ में तू ने अपनी शेरियत से नाम पाया है
बिर्ज लाल रअना
नज़्म
''मैं मो'तक़िद-ए-फ़ित्ना-ए-महशर न हुआ था''
मैं भी ग़म-ए-दुनिया का शनावर न हुआ था
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
नुशूर वाहिदी
नज़्म
यकसाँ नज़दीक-ओ-दूर पे था बारान-ए-फ़ैज़-ए-आम तिरा
हर दश्त-ओ-चमन हर कोह-ओ-दमन में गूँजा है पैग़ाम तिरा
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
इख़तिलाफ़-ए-दीन-ओ-मिल्लत के ये झगड़े हों तमाम
जो मुसीबत बन गए हैं आज बहर-ए-ख़ास-ओ-आम
सफ़ीर काकोरवी
नज़्म
तभी तो हम ने तोड़ दिया था रिश्ता-ए-शोहरत-ए-आम
तभी तो हम ने छोड़ दिया था शहर-ए-नुमूद-ओ-नाम