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नज़्म
कोई नहीं जान पाएगा कि क्यों हमारे घर
में एक फ़्रेम बग़ैर किसी तस्वीर के हमेशा
मुद्दस्सिर अब्बास
नज़्म
मुझे भी लोग कहते हैं कि ये जल्वे पराए हैं
मिरे हमराह भी रुस्वाइयाँ हैं मेरे माज़ी की
साहिर लुधियानवी
नज़्म
सुना है हो भी चुका है फ़िराक़-ए-ज़ुल्मत-ओ-नूर
सुना है हो भी चुका है विसाल-ए-मंज़िल-ओ-गाम