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नज़्म
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
किसी को मौत से पहले किसी ग़म से बचाना हो
हक़ीक़त और थी कुछ उस को जा के ये बताना हो
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
मगर ऐ काश देखें वो मिरी पुर-सोज़ रातों को
मैं जब तारों पे नज़रें गाड़ कर आँसू बहाता हूँ
साहिर लुधियानवी
नज़्म
दूर इक मेडक चीख़ रहा है, ख़तरों से आज़ाद हूँ मैं
इस से बढ़ कर ग़ारत-गर तूफ़ान नज़र से गुज़रे हैं
साक़ी फ़ारुक़ी
नज़्म
तेरे जिस्म के पुर-असरार ज़मानों की तहरीरें पढ़ लेता था
और फिर अच्छी अच्छी नज़्में घड़ लेता था