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नज़्म
जब दुख के बादल पिघलेंगे जब सुख सागर छलकेगा
जब अम्बर झूम के नाचेगा जब धरती नग़्मे गाएगी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
इधर-उधर से यहाँ वहाँ से अजब कहानी गढ़ी गई थी
समझ में आई न इस लिए भी के दरमियाँ से पढ़ी गई थी