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नज़्म
जिस की ज़मीं पे अब तक 'गाँधी' है और जवाहर
'अबुल-कलाम' जैसे जिस मुल्क में हों लीडर
लाला अनूप चंद आफ़्ताब पानीपति
नज़्म
थोड़ा थोड़ा ये जो सुहागन रंग इकट्ठा दिल में हुआ है
जाने कितने भेद निचोड़े नींद गँवाई प्यास चुराई
सलाहुद्दीन परवेज़
नज़्म
तुझ पे उट्ठी हैं वो खोई हुई साहिर आँखें
तुझ को मालूम है क्यूँ उम्र गँवा दी हम ने