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नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
जिस के पर्दों में नहीं ग़ैर-अज़-नवा-ए-क़ैसरी
देव-ए-इस्तिब्दाद जम्हूरी क़बा में पा-ए-कूब
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मिरा ईमाँ है मेरी ज़िंदगी है मेरी जन्नत है
मेरी आँखों को ख़ीरा कर गईं ताबानियाँ उस की
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ये मुफ़्लिसी वो शय है कि जिस घर में भर गई
फिर जितने घर थे सब में उसी घर के दर गई
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
मिरे जनम ही के दिन मर गई थी माँ मेरी
वो माँ कि शक्ल भी जिस माँ की मैं न देख सका