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नज़्म
ख़ुदा-न-ख़्वास्ता गंडे लफ़ंगे और न लच्चे हैं
ये तालिब-इल्म कॉलेज के शरीफ़ों के ये बच्चे हैं
सय्यदा फ़रहत
नज़्म
सुनहरे सुर्ख़ पैरहन भिगोती शहर-ज़ादियाँ
गदेले गंदे पोखरों में तैरती हैं मछलियाँ
आशुफ़्ता चंगेज़ी
नज़्म
और कभी कर डाले होंगे कपड़े गंदे दादा के
सारी बातें याद करो फिर मुझ को देखो अब्बू जी
हैदर बयाबानी
नज़्म
गंदे-मंदे लोगों को भूके-नंगे बच्चों को
जाने क्या क्या सिखलाते थे हम जैसा ही बतलाते थे