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नज़्म
जहाँ में हर तरफ़ है इल्म ही की गर्म-बाज़ारी
ज़मीं से आसमाँ तक बस इसी का फ़ैज़ है जारी
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
बर्फ़-ज़ारों को तिरे अन्फ़ास ने गरमा दिया
तेरे इस्तिग़्ना ने तख़्त-ए-सल्तनत ठुकरा दिया
सीमाब अकबराबादी
नज़्म
मुईन अहसन जज़्बी
नज़्म
कोई है जो नवा-ए-इश्क़ से महफ़िल को गरमा दे
कोई है जो वफ़ा की हूक से सीनों को बर्मा दे
सय्यद मेहदी हुसैन रिज़वी
नज़्म
हौसला रख मुंतज़िर रह मौसम-ए-गर्मा का फिर
बैन मत कर अब दिल-ए-नाकाम रुख़्सत हो गया