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नज़्म
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
घड़े का पानी क़तरा-क़तरा डोल रहा है
दीवारों की मिट्टी में बरसों से गूंधी कुछ पोरों का लम्स अचानक
हम्माद नियाज़ी
नज़्म
घोड़े पे मैं सवार हूँ सुनते हो पैदलो
मुझ पर सवार नश्शा है मैं उस के हूँ जिलौ
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
शोरिश काश्मीरी
नज़्म
जाने बाहर इस होनी के हस्त में क्या क्या कुछ है
आज ये अपने पाँव तो पातालों में गड़े हुए हैं
मजीद अमजद
नज़्म
बहर-सू जब्र-ओ-इस्तिबदाद चाहे सूलियाँ गाड़े
उतर आएँ बलाएँ हाथ में ज़हराब ले ले कर
गुफ़्तार ख़याली
नज़्म
ग़ुबार और गर्द का और तेल की बू का ख़ज़ीना है
ये मोटर-कार और ''गड्डे'' की औलाद-ए-नरीना है