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नज़्म
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
काले कोस ग़म-ए-उल्फ़त के और मैं नान-ए-शबीना-जू
कभी चमन-ज़ारों में उलझा और कभी गंदुम की बू
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
मैं ने माना वज्द में दुनिया को ला सकता है तू
मैं ने ये माना ग़म-ए-हस्ती मिटा सकता है तू
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मस्जिदों में मौलवी ख़ुत्बे सुनाते ही रहे
मंदिरों में बरहमन अश्लोक गाते ही रहे
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
घंटी बाँध के चूहे जब बिल्ली से दौड़ लगाते थे
पेट पे दोनों हाथ बजा कर सब क़व्वाली गाते थे
गुलज़ार
नज़्म
हाज़िरी अब कौन बोले कौन अब आएगा लेट
कॉलेज और स्कूल हैं सुनसान ख़ाली इन के गेट