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नज़्म
कोई नहीं जो हाथ बढ़ा कर गिरतों को ले थाम
बाहर से चुप चुप लगता है अंदर है कोहराम
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मत आज़मा कि हक़ ने गिरतों को कैसे थामा
मन जर्रबलमुजर्रब हल्लत बिहिन्नदामा
ज़ाहिदा ख़ातून शरवानिया
नज़्म
किस क़दर तुम पे गिराँ सुब्ह की बेदारी है
हम से कब प्यार है हाँ नींद तुम्हें प्यारी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दलील-ए-सुब्ह-ए-रौशन है सितारों की तुनुक-ताबी
उफ़ुक़ से आफ़्ताब उभरा गया दौर-ए-गिराँ-ख़्वाबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो जिन्हें ताब-ए-गिराँ-बारी-ए-अय्याम नहीं
उन की पलकों पे शब ओ रोज़ को हल्का कर दे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
बद-हाल घरों की बद-हाली बढ़ते बढ़ते जंजाल बनी
महँगाई बढ़ कर काल बनी सारी बस्ती कंगाल बनी