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नज़्म
ज़ीशान साहिल
नज़्म
देखो हम कैसे बसर की इस आबाद ख़राबे में
कभी ग़नीम-ए-जौर-ओ-सितम के हाथों खाई ऐसी मात
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
वो ज़माँ को भी अपने लपेटे में ले लें
वो हॉकिंग की थ्योरी के काले गढ़ों की ग्रेविटी भी
सोहैब मुग़ीरा सिद्दीक़ी
नज़्म
रोब-ए-फ़ग़्फ़ूरी हो दुनिया में कि शान-ए-क़ैसरी
टल नहीं सकती ग़नीम-ए-मौत की यूरिश कभी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जहाँ हम सब इकट्ठे मिल के उस को अपनी दुनिया
अपनी इस बे-फ़ैज़ दुनिया में घसीटे जा रहे थे
हसन शाहनवाज़ ज़ैदी
नज़्म
अच्छी अम्माँ वक़्त की डिबिया जो खुल जाए कहीं
और ये घंटे और मिनट सारे निकल कर भाग जाएँ