aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "guftagu aur taqree"
इक साइकल पछाड़ीइक टैक्सी को रगड़ा
रंग रंगीली प्यारी चुनरीमलमल की इक तारी चुनरी
मगर गुफ़्तुगू उन कीसब इख़तिराई थी मेरी
कोई गुफ़्तुगू आज तकमैं ने की ही नहीं
और जब ख़त्म-ए-तक़रीब की राख मेंआँख मलने लगें
(1)कस तरह बयाँ हो तिरा पैराया-ए-तक़रीर
घर में ला कर उसेएक तक़रीब में भी पहुँचना है जल्दी मुझे
और टकराई तो फिर चर्ख़ की रानाई गईगर्दिशें चाँद सितारों की नज़र आने लगीं
परिंदों से सबक़ सीखा शजर से गुफ़्तुगू की हैसवाद-ए-जाँ की ख़ामोशी में ठहरे
बहुत छोटी सी इक तक़रीब रखी हैये दुनिया है
दम-ए-तक़रीर थी मुस्लिम की सदाक़त बेबाकअदल उस का था क़वी लौस-ए-मराआत से पाक
सब को भाती थी नेक ख़ू उस कीख़ूब लगती थी गुफ़्तुगू उस की
देखता है दीदा-ए-हैराँ तिरी तस्वीर कोक्या तसल्ली हो मगर गिरवीदा-ए-तक़रीर को
अब इन तकती हुई आँखों के भूरे मल्गजे बादलगुल-ओ-लाला शरर बरसा नहीं पाते
अब भी अफ़्कार पे पहरा है सियह-कारों कासोच सकते हैं मगर जुरअत-ए-तक़रीर नहीं
एक आशिक़ बा-वफ़ा और एक महबूबा हसींकर रहे हैं दोनों बाहम गुफ़्तुगू-ए-दिल-नशीं
पस-ए-तक़रीब-ए-मुलाक़ात यहाँ शाम ढले
मगर वो दरिंदे तो गिनती के हैंअनगिनत मर्द वो हैं जिन्हों ने तुम्हें शान-ओ-तकरीम बख़्शी
इस जगह ख़ामोशियाँ भी इक लब-ए-तक़रीर हैंइस जगह रूपोशियाँ भी दिल की दामन-गीर हैं
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