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नज़्म
मुसलमाँ को मुसलमाँ कर दिया तूफ़ान-ए-मग़रिब ने
तलातुम-हा-ए-दरिया ही से है गौहर की सैराबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हबीब जालिब
नज़्म
वो मय-ए-सरकश हरारत जिस की है मीना-गुदाज़
हिक्मत-ए-मग़रिब से मिल्लत की ये कैफ़िय्यत हुई
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सरापा रंग-ओ-बू है पैकर-ए-हुस्न-ओ-लताफ़त है
बहिश्त-ए-गोश होती हैं गुहर-अफ़्शानियाँ उस की
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ज़र्रे ज़र्रे में तिरे ख़्वाबीदा हैं शम्स ओ क़मर
यूँ तो पोशीदा हैं तेरी ख़ाक में लाखों गुहर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
फूल क्या ख़ार भी हैं आज गुलिस्ताँ-ब-कनार
संग-रेज़े हैं निगाहों में गुहर आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जज़्ब होंगे अभी इस ख़ाक-ए-चमन में ऐ दोस्त
अश्क बन बन के गुहर-रेज़ा-ए-शबनम कितने
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
हैं अभी सद-हा गुहर इस अब्र की आग़ोश में
बर्क़ अभी बाक़ी है इस के सीना-ए-ख़ामोश में