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नज़्म
मुझे तो बे-सुकूँ सा कर गया उस शोख़ का कहना
हक़ीक़त के तराज़ू में कभी तौला है जज़्बों को
मोहम्मद तन्वीरुज़्ज़मां
नज़्म
फ़िक्र-ए-इंसाँ पर तिरी हस्ती से ये रौशन हुआ
है पर-ए-मुर्ग़-ए-तख़य्युल की रसाई ता-कुजा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दिल है पहलू में तो पैदा शेवा-ए-तुरकाना कर
जौर हफ़्त-अफ़्लाक के होते रहें परवा न कर