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नज़्म
सर-ज़मीन-ए-रंग-ओ-बू पर अक्स-ए-गुलख़न ता-कुजा?
पाक सीता के लिए ज़िंदान-ए-रावण ता-कुजा?
जोश मलीहाबादी
नज़्म
यहाँ गुल-ख़ान जितने हैं वो सब पुर-जोश बैठे हैं
मगर पंजाब के जो लोग हैं ख़ामोश बैठे हैं
असद जाफ़री
नज़्म
हर तरफ़ हो जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-वतन शो'ला-फ़िशाँ
गुलख़न-ए-सोज़ाँ नज़र आए यहाँ का हर जवाँ
टीका राम सुख़न
नज़्म
बढ़ के उस इन्दर सभा का साज़ ओ सामाँ फूँक दूँ
उस का गुलशन फूँक दूँ उस का शबिस्ताँ फूँक दूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
सहरा को चमन बन कर गुलशन बादल को रिदा क्या लिखना
ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना
हबीब जालिब
नज़्म
हल्क़ा-ए-ज़ुल्फ़ कहीं गोशा-ए-रुख़्सार कहीं
हिज्र का दश्त कहीं गुलशन-ए-दीदार कहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
गुलशन-ए-याद में गर आज दम-ए-बाद-ए-सबा
फिर से चाहे कि गुल-अफ़शाँ हो तो हो जाने दो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
निशान-ए-बर्ग-ए-गुल तक भी न छोड़ उस बाग़ में गुलचीं
तिरी क़िस्मत से रज़्म-आराइयाँ हैं बाग़बानों में