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नज़्म
उस नार में ऐसा रूप न था जिस रूप से दिन की धूप दबे
इस शहर में क्या क्या गोरी है महताब-रुख़े गुलनार-लबे
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
तुझ को कितनों का लहू चाहिए ऐ अर्ज़-ए-वतन
जो तिरे आरिज़-ए-बे-रंग को गुलनार करें
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ये हंगाम-ए-विदा-ए-शब है ऐ ज़ुल्मत के फ़रज़ंदो
सहर के दोश पर गुलनार परचम हम भी देखेंगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
बहार की ख़ुश-गवार हिद्दत से रात गुलनार हो रही थी
रुपहले सपने से आसमाँ पर सहाब बन कर बिखर गए थे
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
है हर दम नाचने गाने का ये तार बँधाया होली ने
हर जागह थाल गुलालों से, ख़ुश-रंगत की गुल-कारी है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
चली आती है अब तो हर कहीं बाज़ार की राखी
सुनहरी सब्ज़ रेशम ज़र्द और गुलनार की राखी