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नज़्म
मिरे महबूब तेरी उल्फ़त-ए-सादिक़ पे नाज़ाँ हूँ
तिरे हुस्न-ए-क़यामत-ख़ेज़-ओ-रंगीं का ग़ज़ल-ख़्वाँ हूँ
धर्मपाल आक़िल
नज़्म
एक आग़ोश-ए-हसीं शौक़ की मेराज है क्या
क्या यही है असर-ए-नाला-ए-दिल-हा-ए-हज़ीं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तुयूर-ओ-वहशी-ओ-इंसान-ओ-फ़ितरत-ए-रंगीं
तिरे कलाम में यकसाँ है सब से प्यार तिरा
जयकृष्ण चौधरी हबीब
नज़्म
कहीं चंगेज़ के होंटों पे मौज-ए-ख़ंदा-ए-रंगीं
कहीं मज़लूम की आँखों में नम ऐसा न होना था
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
रहज़न-ए-हुस्न को इस इश्क़ की मंज़िल से ग़रज़
ख़ूगर-ए-ख़ल्वत-ए-रंगीन को महफ़िल से ग़रज़
नियाज़ गुलबर्गवी
नज़्म
सिर्फ़ उसी की तर्जुमानी है तिरे अशआ'र में
जिस सुकूत-ए-राज़-ए-रंगीं को कहें जान-ए-हयात