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नज़्म
गुल से अपनी निस्बत-ए-देरीना की खा कर क़सम
अहल-ए-दिल को इश्क़ के अंदाज़ समझाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
फ़िरदौस-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ है दामान-ए-लखनऊ
आँखों में बस रहे हैं ग़ज़ालान-ए-लखनऊ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
कुछ भी आँखों में नहीं अश्क-ए-नदामत के सिवा
कुछ भी दामन में नहीं दाग़-ए-मलामत के सिवा
क़ैसर-उल जाफ़री
नज़्म
अमीक़ हनफ़ी
नज़्म
मगर क्या कीजिए जब फ़ैसला ये है मशिय्यत का
कि मैं फ़ितरत की आँखों से गिरूँ अश्क-ए-रवाँ हो कर
अहसन अहमद अश्क
नज़्म
'इबादत रंग में आए सदा तिश्ना-लबी ही से
इसी के दम से हुस्न-ए-मा'रिफ़त भी होता है हासिल
प्रेम पाल अश्क
नज़्म
हासिल-ए-इश्क़-ए-मुस्तफ़ा उन से निज़ाम-ए-काएनात
उन के बग़ैर शरअ'-ओ-दीन बुत-कदा-ए-तसव्वुरात