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नज़्म
ख़ुदी में डूब जा ग़ाफ़िल ये सिर्र-ए-ज़िंदगानी है
निकल कर हल्क़ा-ए-शाम-ओ-सहर से जावेदाँ हो जा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो जिन्हें ताब-ए-गिराँ-बारी-ए-अय्याम नहीं
उन की पलकों पे शब ओ रोज़ को हल्का कर दे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
हल्क़ा-ए-ज़ुल्फ़ कहीं गोशा-ए-रुख़्सार कहीं
हिज्र का दश्त कहीं गुलशन-ए-दीदार कहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
अक़्ल की मंज़िल है वो इश्क़ का हासिल है वो
हल्क़ा-ए-आफ़ाक़ में गर्मी-ए-महफ़िल है वो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रंग-ए-रुख़्सार पे हल्का सा वो ग़ाज़े का ग़ुबार
संदली हाथ पे धुंदली सी हिना की तहरीर
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ये नज़्म मैं तिरे क़दमों में डाल दूँ कैसे
नवा-ए-दर्द से कुछ जी तो हो गया हल्का
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
जिस में एक दूसरे से हम-किनार तैरते रहे
मुहीत जिस तरह हो दाएरे के गिर्द हल्क़ा-ज़न
नून मीम राशिद
नज़्म
ज़ेर-ए-लब अर्ज़ ओ समा में बाहमी गुफ़्त-ओ-शुनूद
मिशअल-ए-गर्दूं के बुझ जाने से इक हल्का सा दूद
जोश मलीहाबादी
नज़्म
नर्गिस-ए-नाज़ में वो नींद का हल्का सा ख़ुमार
वो मिरे नग़्म-ए-शीरीं का असर आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
वर्ना 'ग़ालिब' की ज़बाँ में मिरे हमदम मिरे दोस्त
दाम हर मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग
साहिर लुधियानवी
नज़्म
रह-गुज़र, साए, शजर, मंज़िल-ओ-दर, हल्का-ए-बाम
बाम पर सीना-ए-महताब खुला, आहिस्ता