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नज़्म
बहुत दिनों में रास्ता हरीम-ए-नाज़ का मिला
मगर हरीम-ए-नाज़ तक पहुँच गए तो क्या मिला
आमिर उस्मानी
नज़्म
देख तो लें क्या हुआ था हरीम हरीम-ए-नाज़ में
इश्क़ के असरार में जज़्बात के इज़हार में
अबु बक्र अब्बाद
नज़्म
गूँज उट्ठा तेरे नग़्मों से हरीम-ए-हुस्न-ओ-नाज़
आज तक महफ़ूज़ है हर दिल में तेरा सोज़-ओ-साज़
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
नज़्म
नक़्श-ए-उल्फ़त से नुमायाँ इक नया अंदाज़ है
तू हरीम-ए-इश्क़ है या जल्वा-गाह-ए-नाज़ है
साक़िब कानपुरी
नज़्म
नक़्श-ए-उल्फ़त से नुमायाँ इक नया अंदाज़ है
तू हरीम-ए-इश्क़ है या जल्वा-गाह-ए-नाज़ है
साक़िब कानपुरी
नज़्म
अदू जिस का ख़राब-ए-ग़म शिकार-ए-ना-मुरादी था
हर इक साहिल-नशीं जाँ-सोज़ तूफ़ानों का आदी था
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
मगर ये कर नहीं सकता मस्लहत ख़ामोश रखती है
हरीम-ए-मय-कदे में ख़ानक़ाहों मठ मदरसों में