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नज़्म
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मगर हिन्दोस्ताँ हिन्दोस्ताँ हिन्दोस्ताँ हे हे
ज़मीं इस की न बदली और न बदला आसमान हे हे
सय्यद मेहदी हुसैन रिज़वी
नज़्म
हे ईश्वर तेरे चौखट पर तो सभी बराबर हैं
मंदिर में बैठा तू इसी मूर्ती-कार के घर से जाता है