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नज़्म
ये दिल के दाग़ तो दुखते थे यूँ भी पर कम कम
कुछ अब के और है हिज्रान-ए-यार का मौसम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ग़म-ए-हिज्राँ है क्या और सोज़-ए-उल्फ़त किस को कहते हैं
जुनूँ होता है कैसा और वहशत किस को कहते हैं
अख़्तर शीरानी
नज़्म
विसाल ओ हिज्राँ की दास्तानों का नौहागर हूँ
जिन्हें ये दुनिया हज़ार-हा बार सुन चुकी है
असअ'द बदायुनी
नज़्म
''तू कहाँ जाएगी कुछ अपना ठिकाना कर ले
हम तो कल ख़्वाब-ए-अदम में शब-ए-हिज्राँ होंगे''
शोरिश काश्मीरी
नज़्म
रौशनी होती नहीं मेरे सियह-ख़ाने में
शम-ए-दिल अब शब-ए-हिज्राँ में जलाऊँ क्यूँकर
राबिया सुलताना नाशाद
नज़्म
भूल जाऊँ तिरी ख़ुशबू तिरी क़ुर्बत तिरा लम्स
सोज़-ए-हिज्राँ से फ़सुर्दा रहूँ रंजूर रहूँ
नसीर प्रवाज़
नज़्म
कुछ दर्द में डूबी ग़म-ए-हिज्राँ से मोअ'त्तर
मानूस से अल्फ़ाज़ में पहचानी सी सतरें