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नज़्म
थी फ़रिश्तों को भी हैरत कि ये आवाज़ है क्या
अर्श वालों पे भी खुलता नहीं ये राज़ है क्या
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
किसी का नाम लिक्खा है मिरी सारी बयाज़ों पर
मैं हिम्मत कर रहा हूँ यानी अब उस को मिटाना है
जौन एलिया
नज़्म
अपनी हिम्मत है कि हम फिर भी जिए जाते हैं
ज़िंदगी क्या किसी मुफ़लिस की क़बा है जिस में
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जिन का दीं पैरवी-ए-किज़्ब-ओ-रिया है उन को
हिम्मत-ए-कुफ़्र मिले जुरअत-ए-तहक़ीक़ मिले
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तेरे होंटों पे तबस्सुम की वो हल्की सी लकीर
मेरे तख़्ईल में रह रह के झलक उठती है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
रहा दिल-बस्ता-ए-महफ़िल मगर अपनी निगाहों को
किया बैरून-ए-महफ़िल से न हैरत-आश्ना तू ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
नुत्क़ को सौ नाज़ हैं तेरे लब-ए-एजाज़ पर
महव-ए-हैरत है सुरय्या रिफ़अत-ए-परवाज़ पर